रविवार, 20 अक्टूबर 2013
दिल की बात-------: जिन्दगी
दिल की बात-------: जिन्दगी: जिन्दगी की ऊँची नीची राहो से अंजान मै इधर उधर सब को अपना देखती हु ...
जिन्दगी
जिन्दगी की ऊँची नीची राहो से अंजान मै
इधर उधर सब को अपना देखती हु
हर शैतान में छिपा इंसान देखती हु
फिर धोखा खाकर नयी शुरुवात देखती हूँ
कुछ हो कर अंजान कुछ अंजान हु मै
इस दुनिया मै जीने का अंदाज देखती हूँ
बरसता है प्यार जब किसी इंसान का
उस में छिपा अब स्वार्थ देखती हूँ
खो कर न पा सकी कुछ
वो खोया हुआ अपना विश्वास ढूढती हूँ
अपनो की भीड़ में वो गुम हुआ
अपनापन ढूढती हूँ
अपनी परछाई को भी
अपने से जुदा देखती हूँ
जब सम्हलती हूँ भेडियो से
रेत के मालिंद इन हाथो से
सब कुछ फिसलत देखती हूँ ,,,,,,,,,,,,,,इरा पाण्डेय ,,,,,,,,,,,,
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