यु तुम मुझे से छल न किया करो गिरधारी
मैं तुम्हारी हर अदा पर जाऊ बलिहारी।
यमुना तट पर राह तकु मै नित नित हरी।
सखियो के ताने हर पल मुझे पर भरी
न भाये मुझे हार सिगार न फूलो की वेणी
तेरे नित दर्शन से बंधी जीवन डोरे मेरी
न मैं राधा न मैं रुक्मणी बन पायी
तेरी मुरली भी कभी मेरे लिए सिर्फ तन न छेड़ पायी
फिर भी एक आस सी दिल में जगी रहती है
मेरे ह्रदय आँगन में बसी तेरी मूरत है
उस पर ही में वारी हु गिरधारी
न चाँहू तीन भुवन मै न हीरो से भरी थाली
तेरी भक्ति के दीप जले मेरे मन में गिरधारी
दो इतना आशीष मुझे तुम हो मुझे में मैे हो तुझ में
तेरी प्रीत में रंगी में अपनी छवि में देखू छबि तुम्हरी।
................ यु तुम ,,,,,,,,,,,
ऋतु दुबे ५/०९ २०१५ \\\\