बिखरी बिखरी सी जिंदगी
फिर से कैसे सवारू
किसी कोने है उलझी रिश्तो की डोर पड़ी है
किसी कोने में ये मन घायल पड़ा
बिधा बिधा से भाव है
ह्रदय में अपनों के दिए घाव
इसी सिरे को पकडती जिन्दगी का
वो सिरा उलझता जाता
हर लमहा बोझील
हर रिश्ता एक नासूर
खुद की परछाई से दर
सिमट जाती हु ,
जितना सुलझाती हु उतनी बिखर जाती हु . इरा ऋतु दुबे ,१०/०६/11
फिर से कैसे सवारू
किसी कोने है उलझी रिश्तो की डोर पड़ी है
किसी कोने में ये मन घायल पड़ा
बिधा बिधा से भाव है
ह्रदय में अपनों के दिए घाव
इसी सिरे को पकडती जिन्दगी का
वो सिरा उलझता जाता
हर लमहा बोझील
हर रिश्ता एक नासूर
खुद की परछाई से दर
सिमट जाती हु ,
जितना सुलझाती हु उतनी बिखर जाती हु . इरा ऋतु दुबे ,१०/०६/11