शनिवार, 25 जून 2011

क्षणिकाए जो मेरे दिल मै आ गयी

दिल की बात हम जुबा पर ला भी नहीं पाते
वो है की अलविदा बोल मुस्कुरा के चले जाते है
दिल आह भर के रहा जाता है वो सुन भी नहीं पाते
और वो दम भरते है दिल के हर पन्ने को पढने की (ऋतु दुबे
नित पलकें बिछा के तकती में
चाहू और बेकरारी से झाकती में
न तुम आये न तुम्हारी कोई खबर आई
बरसात में भी बारिश न आई
क्यू लौट गए तुम रूठ के
"बादल "किस राह भटक गए तुम .ऋतु दुबे २३/०६/११
जो गा न सका वो गीत हु में ,जो छेडा न गया वो सगीत हु में .
हवा का वो झोका हु जिसे महसूस न कर सके तुम कभी भी ,
रेत के मलिन्द तुम्हारी मुट्टी से फिसल गया वो समय हु में
सब में मै हु तुम न पहचान सके कभी जिसे वो मै ही तो हु .ऋतु दुबे १८/०६/11

शुक्रवार, 10 जून 2011

बिखरी बिखरी सी जिंदगी
फिर से  कैसे सवारू
किसी कोने है उलझी रिश्तो की डोर पड़ी है
किसी कोने में ये मन घायल पड़ा
बिधा बिधा  से भाव है
ह्रदय में  अपनों के दिए घाव
इसी सिरे को पकडती जिन्दगी का
वो सिरा उलझता जाता
हर लमहा बोझील
हर रिश्ता एक नासूर
खुद की परछाई से दर
सिमट जाती हु ,
जितना सुलझाती हु उतनी बिखर जाती हु .  इरा ऋतु   दुबे ,१०/०६/11