दिल की बात हम जुबा पर ला भी नहीं पाते
वो है की अलविदा बोल मुस्कुरा के चले जाते है
दिल आह भर के रहा जाता है वो सुन भी नहीं पाते
और वो दम भरते है दिल के हर पन्ने को पढने की (ऋतु दुबे
नित पलकें बिछा के तकती में
चाहू और बेकरारी से झाकती में
न तुम आये न तुम्हारी कोई खबर आई
बरसात में भी बारिश न आई
क्यू लौट गए तुम रूठ के
"बादल "किस राह भटक गए तुम .ऋतु दुबे २३/०६/११
जो गा न सका वो गीत हु में ,जो छेडा न गया वो सगीत हु में .
हवा का वो झोका हु जिसे महसूस न कर सके तुम कभी भी ,
रेत के मलिन्द तुम्हारी मुट्टी से फिसल गया वो समय हु में
सब में मै हु तुम न पहचान सके कभी जिसे वो मै ही तो हु .ऋतु दुबे १८/०६/11
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