शनिवार, 31 मार्च 2012


नयनो को भाषा जान कर
क्यू रोते  है ये नयना
क्यू उमड़ पड़ती  है
अश्रु की धारा
कभी ख़ुशी कभी गम में
 अनजाने सफ़र में
बह जाती है
थोड़ी दुःख से गरम
जो में दुख छुपाने पी जाती
गरल बन बहाने लगाती
मेरे लहू में
में उस का पान कर
लाती मधुर मुस्कान लबो में
फिर जीती
उन अश्रुवो को पीती
कोसती क्यू बहते है
ये नादान?
क्या मेरे पास ही झिलमिलाता
अश्रुवो का सागर है ?
या में ही मोहित हु इन पर
या ये है मुझे पर ही मेहरबान
सोचती कभी क्यू मेहमा  बन
बसते है मेरे ही नयनो में
बसते ही है तो
क्यू
वक्त बे वक्त बह कर
देते बता सब को मेरा राज.ऋतु

मंगलवार, 20 मार्च 2012



छोटी सी चिड़िया मेरे दिल सी 
हमेश चहकती रहती है किसी की ख़ुशी के लिए 
खुद को भूली रहती दिन भर की भाग दौड़ में 
मासूम सी उड़ती इस दरवाजे से उस खिड़की तक 
कोई तो खिड़की खुली होगी उस के घरोंदा बनाने के लिए 
मेहनत से दाना चुगती छोटी बगिया में रौनक  करती
 मुझे सी प्यारी सी मेहनती गौरया .ritu

सोमवार, 12 मार्च 2012

चाँद

न जाने क्यू चाँद मुझे 
अपनी बांहों में घिरा सा 
लगता है 
उस का दाग 
मुझे अपना सा लगता है 
कभी श्वेत चादनी 
की चुनर ओदा 
मुझे चान्दी की पालकी में बिठा 
ले जाता है तारो के पास 
कभी कलि अमावस्या 
की रात में करता मुझे मिलाने
से इंकार
कभी हलकी धूप का फायदा उठा
दिन में भी करा
नैनो ही नैनो से भरता
खुमार
में उस के प्यार में सिक्त
चादनी की चुनर
ओटे उस की और खिची
चली जाती हु
न जाने-----
 चाँद ------------------

ऋतु दुबे

शनिवार, 10 मार्च 2012

सितारा


सितारा

  अक्सर जब में और  मेरी तन्हाई
  साथ होते है
 खुले आँगन  के नीचे
  तुम्हारी साये में बैठ
   तुम्हारी ही बाते करते है
  तुम असमान से मुझे
  बाँहे फैलाये मुझे पुकारते हो
  में जमीन में खडी
  अल्पक तुम्हारी  ओर
  बेबसी से निहारती रहती हु
  और  सोचती हु क्या
  एक असमान  में रहने वाला
  कभी
  जमीं पर उतर सकता है
  या जमीन की ये
  काया असमान
  के उस सितारे
  की बांहों  में
 खो सकती है
                --------- अक्सर जब में
----------------------------ऋतु  दुबे

गुरुवार, 1 मार्च 2012

                    मेरा आईना भी मुझे से खौफ जादा है
                       मेरी ही आखो में न जाने क्यू पर्दा पड़ा है
                    जो हकीकत न स्वीकार कर खुद की तारीफ करता है
                        खुद को देख तारीफ के पुल बंधता है
                        उस के आँखों में खुद के सपने देखता है क्यू .ritu



                                           
                                  

क्षणिकाए

            बसती पुरवाई से धरा का दिल भी डोला है
             चुपके से उस ने अपने गगन के कानो में कुछ बोला है
             शर्म से लाल हो उठा गगन भी धरा ने घुघट उपवनो में जो खोला है
              सरक दी है पीली चुनर अपनी सूरज ने भी अपनी बहे खोला है .ऋतु दुबे २७.०२.12
                                                    क्षणिकाय
                                
                                                    नादाँ दिल ये समझने के लिए तैयार ही नहीं
                                                 की उस का दिल भी नादा है किसी और को चाहत होगा
                                                   तुझे से गीत बनता है किसी के लिए
                                                वो भी तो चुप चुप के आहे भरता होगा किसी के लिए
                         तू जो तडफता है उस के लिय वो भी दिन रात तडफता होगा किसी के लिए
                         तू ही नादानी न कर मेरे दिल छोड़ दे उसे किसी और के लिए .नादाँ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
                                                                                                                          ऋतु दुबे