बसती पुरवाई से धरा का दिल भी डोला है
चुपके से उस ने अपने गगन के कानो में कुछ बोला है
शर्म से लाल हो उठा गगन भी धरा ने घुघट उपवनो में जो खोला है
सरक दी है पीली चुनर अपनी सूरज ने भी अपनी बहे खोला है .ऋतु दुबे २७.०२.12
क्षणिकाय
नादाँ दिल ये समझने के लिए तैयार ही नहीं
की उस का दिल भी नादा है किसी और को चाहत होगा
तुझे से गीत बनता है किसी के लिए
वो भी तो चुप चुप के आहे भरता होगा किसी के लिए
तू जो तडफता है उस के लिय वो भी दिन रात तडफता होगा किसी के लिए
तू ही नादानी न कर मेरे दिल छोड़ दे उसे किसी और के लिए .नादाँ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ऋतु दुबे
चुपके से उस ने अपने गगन के कानो में कुछ बोला है
शर्म से लाल हो उठा गगन भी धरा ने घुघट उपवनो में जो खोला है
सरक दी है पीली चुनर अपनी सूरज ने भी अपनी बहे खोला है .ऋतु दुबे २७.०२.12
क्षणिकाय
नादाँ दिल ये समझने के लिए तैयार ही नहीं
की उस का दिल भी नादा है किसी और को चाहत होगा
तुझे से गीत बनता है किसी के लिए
वो भी तो चुप चुप के आहे भरता होगा किसी के लिए
तू जो तडफता है उस के लिय वो भी दिन रात तडफता होगा किसी के लिए
तू ही नादानी न कर मेरे दिल छोड़ दे उसे किसी और के लिए .नादाँ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ऋतु दुबे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें