सोमवार, 12 मार्च 2012

चाँद

न जाने क्यू चाँद मुझे 
अपनी बांहों में घिरा सा 
लगता है 
उस का दाग 
मुझे अपना सा लगता है 
कभी श्वेत चादनी 
की चुनर ओदा 
मुझे चान्दी की पालकी में बिठा 
ले जाता है तारो के पास 
कभी कलि अमावस्या 
की रात में करता मुझे मिलाने
से इंकार
कभी हलकी धूप का फायदा उठा
दिन में भी करा
नैनो ही नैनो से भरता
खुमार
में उस के प्यार में सिक्त
चादनी की चुनर
ओटे उस की और खिची
चली जाती हु
न जाने-----
 चाँद ------------------

ऋतु दुबे