मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

लक्ष्य बिहीन पथ पर था में अग्रसर
मुठी भर सपने लिए नीद को तलाशता
न चांदनी रात का इंतजार था
न भोर के सूरज से कोई सरोकार था
सपनों को धरा में रख पेट भरने
खोद रहा मिटटी और पत्थर
............................लक्ष्य विहीन ,,,,,
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................................ऋतु दुबे