शनिवार, 12 अप्रैल 2014

मेरे दिल से निकली आवाज जो शब्दों में ढल गए



              दिल की  धड़कने  भी अब थमने पर  आमदा   है
               कैसे उन को अनुमति दे दू  जब अमानत ये तेरी है। ऋतु  दुबे १२/४ /२०१४
             
              मन की गहराईयो  से सदा ये दुआ  निकलती है तेरे लिए
              पत्थर की ठोकर जो लगे तेरे पावो में तो गुलाब सी सहलाये। ऋतु दुबे

                 मेरा दर्द मेरे चेहरे में नजर आता है हर अपने को
                 एक तू ही सबसे अपना हो कर इस से अनजान बनता है। ऋतु दुबे