कुछ पगड़डिया किसी के साथ चलते चलते कब निकल गयी पता न चला
मंजिल तक कदम पहुँचते पहुँचते कब रुक गए पता न चला
अब भी महक आती है उन हाथो की मेरे हाथ में
वो हाथ मेरे हाथो से कब फिसल गए पता न चला। ऋतु दुबे
मंजिल तक कदम पहुँचते पहुँचते कब रुक गए पता न चला
अब भी महक आती है उन हाथो की मेरे हाथ में
वो हाथ मेरे हाथो से कब फिसल गए पता न चला। ऋतु दुबे