रविवार, 14 अप्रैल 2013

 कुछ  शेर  अर्ज  किया है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,



मेरी आह से निकली अधिया मेरा ही आशिया उजड़ने में अमदा है
एक एक तिनका जोड़ा था हर तिनका उड़ने में आमदा है .ऋतु




 तुम ने जो जख्म दिया था वो अब नासूर बन गए है
रिसता है अब भी उस से तेरी प्यार की मीठी टीस .ऋतु




 उठे सब के कदम मंजिल के तरफ ,मंजिल हर एक को नहीं मिलती
चाँद चमकता है असमान में ,रोशनी हर एक को नहीं मिलाती .ऋतु


काँटों पर चलते चलते अब फूलो की कोमलता भूल गए
अपनों से जखम खाते -खाते उस का दर्द भी भूल गए .ऋतु 




 जमाना बीत गया उन को इस गली से गुजरे हुए
अब भी फिजा में गूंज रही उन की पायल की खनक .ऋतु



 हम गैरों से नहीं अपनों से सताये हुए है
जख्म फूलो से पाए हुए है
काँटों ने सहला कर छोड़ दिया हमे
कहा मुस्कुराके तेरे अपने ही पराये हुए है .ऋतु 03/04/13