आ जरा सुकून के पल गुजर ले मेरी जुल्फों के छाओं में
कुछ सुकून सा मिलेगा तुझे इस ज़माने की उल्फतो से।
महफ़िलो में भीड़ में भी हाला के साथ तू वो कोना ही तलाशेगा
जहा तू जाम में मेरी तस्वीर से चंद मोहब्बत की बाते कर सके.। महफ़िल भी होगी कहकहे भी होगे , साकी हाथो में झलकते जाम भी होगा
न होगे तो हम उस महफ़िल में पर तेरी हर सांसो में हम होगे।
न उम्मीद है मुझे जहा में तेरा मेरा न होने का और न गम है तेरा किसी और के होने पर
बस रहम आता है मुझे तुझ पर न तू इधर का रहा न उधर का। ऋतु दुबे २०/०८/१५