शनिवार, 31 मार्च 2012


नयनो को भाषा जान कर
क्यू रोते  है ये नयना
क्यू उमड़ पड़ती  है
अश्रु की धारा
कभी ख़ुशी कभी गम में
 अनजाने सफ़र में
बह जाती है
थोड़ी दुःख से गरम
जो में दुख छुपाने पी जाती
गरल बन बहाने लगाती
मेरे लहू में
में उस का पान कर
लाती मधुर मुस्कान लबो में
फिर जीती
उन अश्रुवो को पीती
कोसती क्यू बहते है
ये नादान?
क्या मेरे पास ही झिलमिलाता
अश्रुवो का सागर है ?
या में ही मोहित हु इन पर
या ये है मुझे पर ही मेहरबान
सोचती कभी क्यू मेहमा  बन
बसते है मेरे ही नयनो में
बसते ही है तो
क्यू
वक्त बे वक्त बह कर
देते बता सब को मेरा राज.ऋतु

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