मंगलवार, 6 सितंबर 2011
'रिश्ता और पैसा '
रिश्ता और पैसा
तड़पता है दिल रिश्तो की हिलती बुनियाद के लिए
जी ढह गयी पैसे के लिए
कर्णधार था जो घर का आधारहीन निकला
कभी कि थी जो सहायता भाई भाई के लिए
पुराना वो हिसाब बे हिसाब निकला
बाप कि अर्थी उठाते ही
बेदिलो के दिल से बे हिसाब निकला
नकाब उतार गए चेहरों के
जो ह्रदय विशाल थे कभी
वो ह्रदय विहीन निकले
अर्थी एक उठी नकाब कई निकले
चिथड़े चिथड़े हो गयी मर्यादा रिश्तो की
अब पैबंद लगाना भी नागवार गुजरे
जो भाई था कभी बेटे के सामान
वो आस्तीन का संपा निकला
जो भाई था बाप के सामान
वही रिश्तो में अंगार निकला
अपनी ही जड़ो को कटता
कालिदास सा ये परिवार निकला .ऋतु इरा दुबे
तड़पता है दिल रिश्तो की हिलती बुनियाद के लिए
जी ढह गयी पैसे के लिए
कर्णधार था जो घर का आधारहीन निकला
कभी कि थी जो सहायता भाई भाई के लिए
पुराना वो हिसाब बे हिसाब निकला
बाप कि अर्थी उठाते ही
बेदिलो के दिल से बे हिसाब निकला
नकाब उतार गए चेहरों के
जो ह्रदय विशाल थे कभी
वो ह्रदय विहीन निकले
अर्थी एक उठी नकाब कई निकले
चिथड़े चिथड़े हो गयी मर्यादा रिश्तो की
अब पैबंद लगाना भी नागवार गुजरे
जो भाई था कभी बेटे के सामान
वो आस्तीन का संपा निकला
जो भाई था बाप के सामान
वही रिश्तो में अंगार निकला
अपनी ही जड़ो को कटता
कालिदास सा ये परिवार निकला .ऋतु इरा दुबे
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