गुरुवार, 24 जुलाई 2014

नारी का संघर्ष

अभावो  में जी रही  ,भावो  से भरी हुई  हूं
नारी  हु देवी स्वरूपा  पूज्य हु  पर कोख  में मरी जा रही हु
सुबह  मेरा नमन  करता  वो  शाम   हवसी  दरिंदा  बन  जाता
 कोमल कहता    मुझे  ,शक्ति मान  पूजा  भी  करता 
 क्या  समझू   इसे  मैं,  अपना मान  या  सृष्टि    का  अपमान
  छल  से अपनों  के दवारा  छलि  जा  रही  हु मैं
माँ ,पत्नी ,बहन  ,बेटी  हु मैं  फिर भी  अपने   अस्तित्व के लिए
दिन  क्या  और  रात क्या  जन्म  से  खुद  की तलाश   मैं
इस  संसार  में   नित   नए नए  संघर्ष  करती  जा  रही हु    मैं
मुझे संस्कृति  का  बाना  पहना,  वो समाज का ठेकेदार बना
उस बाने  का तार तार  करता ,उन तारो को  सहेज  जा  रही हु  मै
न दे मुझे देवी  का सम्मान ,मुझे  सृष्टि   का एक  अंश  मान ले
मुझे जीवन चक्र  का सहज  ही एक पहिया  मान ले
जिस में एक छोर  एक में  मैं  हु दोनों मिल के एक है
नारी  का संघर्ष
      ........................................... अभावो  में जी रही  ,भावो  से भरी हुई  हूं
…………………………………………ऋतु  दुबे




कोई टिप्पणी नहीं: