मंगलवार, 27 अक्टूबर 2015

कभी  जो  चेेहरे  अजनबी  हुआ  करते  थे  वो अब  अपने  से लगते है
जो अपने है खुदा  के  रिश्ते वो अजनबी  सा  मिज़ाज  रखते है ,
कौन अपना  खून है कौन अपना बेगाना मसाला  ये नहीं है मेरे यार
मसाला तो ये है अपने गैरो  सा और गैर अपनों सा प्यार  क्यू समेटे रहते है। ऋतु दुबे

शनिवार, 10 अक्टूबर 2015

                    
                 
                          यादे
              
        कुछ  शेष  है कुछ अवशेष  है  यादे  तेरी
        जहा  दफ़न  की थी  मोहब्बत  तेरी  मेरी
        वह  कुछ  पौधे  उग  आये  है  जख्मो  हरा  करने
        उन  में खिले पुष्प  बिखेर रहे  खुशबू
         मोहब्बत के  जो  एक  कहानी  सी है
         डालो  में  लगे  कांटे  अब भी  उन जख्म  को  कुदेर  रहे
         जिया   था  जिन लम्हों  को   वो  लम्हे  कटे  नहीं काट रहे
         काश  वो  नज़ारे  मिली  न होती 
         आज हम  भी  जिन्दा  होते  जिंदिगी  के साथ। ऋतु दुबे