यादे
कुछ शेष है कुछ अवशेष है यादे तेरी
जहा दफ़न की थी मोहब्बत तेरी मेरी
वह कुछ पौधे उग आये है जख्मो हरा करने
उन में खिले पुष्प बिखेर रहे खुशबू
मोहब्बत के जो एक कहानी सी है
डालो में लगे कांटे अब भी उन जख्म को कुदेर रहे
जिया था जिन लम्हों को वो लम्हे कटे नहीं काट रहे
काश वो नज़ारे मिली न होती
आज हम भी जिन्दा होते जिंदिगी के साथ। ऋतु दुबे
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