""#नारी मन की मनुहार "
कोई रोक लो न जाते हुए इस दिवस को,
इस दिवस की साँझ हो न कभी ऐसा जादू कर दो न,
दिवस को मास,वर्ष, कई बरसो में परिवर्तित कर दो न,
मेरे सपनो के खाली केनवास में रंग भर दो न ,
आज दिया खुला मंच मुझे विचारो को रखने,
इस मंच को टूटने अब दो न मेरे विचारों को पंख दो न,
कोई रोक लो इस जाते----------
जो आज दिया अथाह सम्मान मुझे #नारी मान ,
ये सम्मान अपने दिलो दिमाग में मेरे लिए बसा लो न ,
जो आज दिया स्नेह अपार अपने ह्रदय की गहराइयों में बसा लो न
जो खड़े हुए मेरे सम्मान में आज तुम ,
मुझे अपनी बराबरी से खड़ा कर गर्वित हो न ,
खैरात नहीं मुझे अधिकार चाहिए जो छिना था मुझे से ,
कोई रोक लो इस जाते-----------
जो आज मेरी उत्कृष्टता ,सृजनता,की माला जपि ,
इस विचारो को , अपनी संकुचित सोच को वृहत कर ,
एक सृजनी का वो सम्मान मुझे दो न ,
में ही हु आह तेरी इस आह को वो आह दो न,
खीच कर एक लक्ष्मण रेखा हर जगह मेरे इर्दगिर्द ,
सुरक्षित भाव का वो अहसास में जीने का आत्मविश्वास दो न ,
कोई रोक लो इस जाते-------------
है मेरी जरुरत तुम को इस समाज को इस सत्य को स्वकीकर कर मुझे भी खुद सा वो सम्मान दो न
तेरे बिना में अधूरी मेरे बिना तू अधूरा इस तथ्य को मान लो न
मुझे खुली हवा में जीने की वो खुद सी आज़ादी दो न
नियति के इस खूबसूरत जीवन को मुझे भी खुल कर जीने दो न
कोई रोक लो इस जाते हुए-----------
**************#डॉ ऋतु दुबे *****************
***************8 /03/२०१७****************
कोई रोक लो न जाते हुए इस दिवस को,
इस दिवस की साँझ हो न कभी ऐसा जादू कर दो न,
दिवस को मास,वर्ष, कई बरसो में परिवर्तित कर दो न,
मेरे सपनो के खाली केनवास में रंग भर दो न ,
आज दिया खुला मंच मुझे विचारो को रखने,
इस मंच को टूटने अब दो न मेरे विचारों को पंख दो न,
कोई रोक लो इस जाते----------
जो आज दिया अथाह सम्मान मुझे #नारी मान ,
ये सम्मान अपने दिलो दिमाग में मेरे लिए बसा लो न ,
जो आज दिया स्नेह अपार अपने ह्रदय की गहराइयों में बसा लो न
जो खड़े हुए मेरे सम्मान में आज तुम ,
मुझे अपनी बराबरी से खड़ा कर गर्वित हो न ,
खैरात नहीं मुझे अधिकार चाहिए जो छिना था मुझे से ,
कोई रोक लो इस जाते-----------
जो आज मेरी उत्कृष्टता ,सृजनता,की माला जपि ,
इस विचारो को , अपनी संकुचित सोच को वृहत कर ,
एक सृजनी का वो सम्मान मुझे दो न ,
में ही हु आह तेरी इस आह को वो आह दो न,
खीच कर एक लक्ष्मण रेखा हर जगह मेरे इर्दगिर्द ,
सुरक्षित भाव का वो अहसास में जीने का आत्मविश्वास दो न ,
कोई रोक लो इस जाते-------------
है मेरी जरुरत तुम को इस समाज को इस सत्य को स्वकीकर कर मुझे भी खुद सा वो सम्मान दो न
तेरे बिना में अधूरी मेरे बिना तू अधूरा इस तथ्य को मान लो न
मुझे खुली हवा में जीने की वो खुद सी आज़ादी दो न
नियति के इस खूबसूरत जीवन को मुझे भी खुल कर जीने दो न
कोई रोक लो इस जाते हुए-----------
**************#डॉ ऋतु दुबे *****************
***************8 /03/२०१७****************
1 टिप्पणी:
अच्छा लिखा है...मेरा ब्लॉग भी देख सकते हैं...
https://piktureplus.blogspot.in/
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