सोमवार, 7 मार्च 2011

 नारी हू मै कोमल मन ,कोमल काया, कोमल ह्रदये पाया,
  मै ही अनन्त आकाश ,असीमित धरा  मै ही ,
 ज्वालावो से जल ज्वाला बनी मै ,बांहों मै तेरी शांत निर्झरनी,
 कोमल आँगन  का हर कोना महकता भावों के पुष्पों से,
 आँचल  का हर कोना तेरी खुशियों से हरा भरा,
 तुझ मै खुद को खुद मै तुझ को समेटना चाहती हूँ  ,
 तुझ मै खुद को समाहित कर पूण होना चाहती हूँ ,
  नारी हू मै कोमलागी वेदना  पीड़ा अपने मन की,
 तुझ ने दी तुझे को ही अर्पित करना चाहती हूँ ,
 क्या हुवा जो तुने जनम लिया मेरी कोख से,
 तेरी परछाई बन तेरी मन की अभिमान बनाना चाहती  हूँ ,
  नारी हू मै अगले जनम नारी ही बनाना चाहती हूँ ,
  तेरी हूँ तुझ को ही अर्पित होना चाहती हूँ  .(इरा पाण्डेय  )ऋतु दुबे      ०७/०३/2011
            महिला दिवस की पूर्व संध्या   पर आप सभी महिलावो को     समर्पित.महिला दिवस की शुभकामना .

 



4 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

आज महिला साहित्‍य के बजाय, रोजी कमाती रेजाओं (मेहनतकश महिलाएं) के प्रति सम्‍मान व्‍यक्‍त कर रहा हूं.

UNBEATABLE ने कहा…

महिला दिवस पर आपको भी बहुत बहुत बधाई, महिला दिवस पर नारी की परिभाषा और अभिलाषा को व्यक्त किया है ....... कोमल शब्दों के साथ सशक्त प्रस्तुतीकरण

Nalini Dubey ने कहा…

Nari ki anupam abhivyakti sabhi bhavnao se otprot hai yah kavita Ritu I like it.

nalini

Nalini Dubey ने कहा…

Nari ki anupam abhivyakti sabhi bhavnao se otprot hai yah kavita Ritu I like it.

nalini