'' उर्मिला ''
जिसकी सांसे दफ़न हो गयी
राजमहल के गलियारे में
नवविवाहिता जो रही अविवाहिता
उस विरहणी सुर्यवंशानी उर्मिल की
मैं तुमको कथा सुनती हूँ ...................
बिना खता के व्यथा सहती
सुख गए आखो के नीर
उड़ गयी चेहरे की लाली
न जी पाई इन चौदह वर्षो में
न मर पाई इन चौदह वर्षो में
उस की व्यथा सुनती हूँ ............
चढ़ी मर्यादाओ के भेढ़ वो
न तोड़ सकी सांसारिक बंधन
न निभा पाई सबकी दृष्टि में पति धर्म
न बहा पाई प्रेम रस की धारा
बंजर ह्रदय न कोई अंकुर
न कोई रस धारा
बूत सी फिरती इधर उधर गलियारों मे
मे उस की कथा ...............................
इतिहास मे दफ़न हो गयी जिसकी यादे
हर आहट पर उठती वो चौक
तरसती रहती जिसकी अखिंया हरि दर्शन को
तन मे आग लगा जाता ठंडी हवा का झोका
पूछो न ह्रदय की अन्नंत व्यथा
उस की कथा .....................................
तुलसी भूले ,भूले बाल्मिकी
उस के सयम की कथा
राम सीता लक्ष्मण सब बोले
उर्मिला से न दूर का नाता
उस उर्मिल की ................................
( इरा पांडेय )ऋतु दुबे २१ /७ /११
जिसकी सांसे दफ़न हो गयी
राजमहल के गलियारे में
नवविवाहिता जो रही अविवाहिता
उस विरहणी सुर्यवंशानी उर्मिल की
मैं तुमको कथा सुनती हूँ ...................
बिना खता के व्यथा सहती
सुख गए आखो के नीर
उड़ गयी चेहरे की लाली
न जी पाई इन चौदह वर्षो में
न मर पाई इन चौदह वर्षो में
उस की व्यथा सुनती हूँ ............
चढ़ी मर्यादाओ के भेढ़ वो
न तोड़ सकी सांसारिक बंधन
न निभा पाई सबकी दृष्टि में पति धर्म
न बहा पाई प्रेम रस की धारा
बंजर ह्रदय न कोई अंकुर
न कोई रस धारा
बूत सी फिरती इधर उधर गलियारों मे
मे उस की कथा ...............................
इतिहास मे दफ़न हो गयी जिसकी यादे
हर आहट पर उठती वो चौक
तरसती रहती जिसकी अखिंया हरि दर्शन को
तन मे आग लगा जाता ठंडी हवा का झोका
पूछो न ह्रदय की अन्नंत व्यथा
उस की कथा .....................................
तुलसी भूले ,भूले बाल्मिकी
उस के सयम की कथा
राम सीता लक्ष्मण सब बोले
उर्मिला से न दूर का नाता
उस उर्मिल की ................................
( इरा पांडेय )ऋतु दुबे २१ /७ /११
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