दिल की बात-------
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शनिवार, 30 जुलाई 2011
व्यथित मन ,
व्यथित है मन ,
भटकता भावों की इन गलियन से उन गलियन
कभी लौटता उस बिंदु में
भावों की नदियों में बांध बांधता
फिर उफान मारता
अचानक हिलोरे लेता
बहा ले जाता सब कुछ
फिर वही व्यथित मन
व्यथित ही रह जाता
जैसे भवर में फंसी पोत ..ऋतु दुबे
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