रिमझिम फुहार में मन मयूर सा नाच रहा
बदलो की ओट से मेरा प्रियतम झांक रहा
अठखेलियाँ करती चपला मेरा दिल कंपा रहा
कलकल करती सरिताए नव संगीत लहरी छिड़ रही
हरियाली चुनर ओढ़ी धरा ने उस में बीरबहूटी सज रही
किसी कोने में छिपा मेरा बच्चपन अंगडाई ले रही
फिर कागज की नाव में प्यार की पतवार लिए
प्यार की पतवार से जीवन नैया खे रहा .ऋतु दुबे
5 टिप्पणियां:
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इस ख़ूबसूरत रचना के लिए ऋतु दुबे जी को बधाई दूं अथवा इरा पांडेय दुबे जी को …
बहुत सुंदर !
मेरा भी रिमझिम फुहार में मन मयूर सा नाच रहा
आभार आपका …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति , आभार
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल
भारतीय स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं .
Nice poem....
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