मोम की तरह में पिघलती चली गयी ,मुझे पता भी न चला
क्या होगा हश्र मेरा ये सोचा न था में यु ही तेरी कशिश में
दिनरात भूल कर दीवानी सी बिखरती चली गयी
इस गलत फहमी में जी रही थी में सजा रही हु अपनी दुनिया
और में खुद तेरे घर की सजावट बन कर बैठक में सज गयी
तार -तार हो कर बिखरे थे मेरे सपने मेरे ही कदमो के नीचे
में उन को तेरे द्वारा मेरी राहो में बिछाए पुष्प समझ
अपने कदमो को जख्मी करती मुस्कुराती चली गयी
अब भी मेरा विश्वाश अडिग है तुझ पर तेरे दिए काँटों
को में दमन में सितार समझ सजाती चली गयी
वो भी समय आएगा जो जख्मो को भर देगा खुशियों से
यहाँ सोच दुखो को ह्रदय की गहराईयों में डुबोती चली गयी
मोम की तरह पिघलती ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ऋतु इरा दुबे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
3 टिप्पणियां:
yahi to har aurat ki niyati hai...pyar-wiswas ke siva uske aanchal me aur hai kya.......behud sarthak rachna....
तार -तार हो कर बिखरे थे मेरे सपने मेरे ही कदमो के नीचे
में उन को तेरे द्वारा मेरी राहो में बिछाए पुष्प समझ
अपने कदमो को जख्मी करती मुस्कुराती चली गयी
आदरणीया ऋतु जी ..सुन्दर भाव ..अच्छा प्रवाह ..त्याग नारी का दिखाती और प्रेम में सनी अच्छी रचना
ये विश्वास कायम रहे उजाला होगा ही ..ओउम श्री गुरुवे नमः
दामन में सितार समझ ...
भ्रमर ५
"वो भी समय आएगा जो जख्मो को भर देगा खुशियों से"
एक टिप्पणी भेजें