चाँद भी आज कुछ घबराया हुआ है ,अपनी सुन्दरता को निहार शरमाया हुआ है
बरसे गा आज उस का नूर धरा में अमृत बना के ये जान खुद बा खुद इतराया हुआ है
बिखरी है रश्मियाँ जल थल में कही रुपहली कही सुनहली अधेरो को डराया हुआ है
मुखरित हो कर भी मौन हो तुम अपनी बहो में जो समेट नहीं पा रहे धरा को
मेरे मन में भी एक प्रश्न उपज रहा आज शरद के चाँद के नूर को देखा कर
क्यू नहीं छिपता है तेरा दाग इस नूर की चमक के सामने तू ही बता दे आज मुझे
इस प्रश्न के उत्तर में यु ही न मेरा जीवन गुजर जाये तेरे दर्द में छिपा है मेरा दर्द भी
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1 टिप्पणी:
behud pyare shabd...chand ke noor se bhare hue....
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