फिर झड़ने लगे वृक्षों के पत्ते
प्रकृति मे जगा फिर कोमल अहसास
कोपल कपोलो से करती
वो मुस्कुरा कर बसंत का अभिनंदन
खिल उठे चाहू दिशा सरसों के फूल
चली शीतल बयार मतवाली
कोयल कुहुकने लगी डाली डाली
बौरा गए आम भी होकर मद मस्त
नदियों का प्रवाह हुआ मध्यम
गोरी के ह्रदय में गूजे गीत थम थम
गेहू की बालिया भी हवा में इठलाकर करती खुशियों का इज़हार
चटकी नवकालिया चहु और आया फिर देख मधु मास (बसंत ऋतु )
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