रविवार, 29 जनवरी 2012

जहा तक हो सके

जहा तक हो सके तुम मुझे समझ लेना
एक किताब सा मुझे पढ़ लेना
पर किताब सा अलमारी के कोने में न रखना
मेरे आँखों में उभरते है भावों
मेरे हर भावों में भरा है तेरे लिए प्यार
उन भावों को तुम समझे लेना
फिर न कहना नहीं करती हो तुम इज़हार .ऋतु

1 टिप्पणी:

मनोज कुमार ने कहा…

दिल की बात जहां तक हो सके पढ़ ही लेना चाहिए। अलमारी के कोने में न रखना चाहिए।