jo dill me aa gaya
कुछ को सपने पूरा करने में मेहतन लगाती है
सोमवार, 18 मार्च 2013
गुरुवार, 7 मार्च 2013
महिला दिवस की पूर्व संध्या में आप सभी महिला मित्रो को बधाई छोटी सी ये कविता आप सभी को समर्पित ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सृजन से तू रची बसी है
भर से तू दबी दबी है
पंखा लगे है तुझको
फिर भी उड़ने से तू डरी डरी है .....
सृजन से तू ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
धरा सी तू संसार का भर लिए
जन्म देती संतानों को
न तुझे मिले रोटी का टुकड़ा
फिर भी दुध बहता तेरी
तेरी छाती से संतानों के लिए
सृजन से तू ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बनता है पुरुष तुझे से महान
फिर भी तू है तुच्छ प्राणी सी
ज्ञान का भंडार होकर
अज्ञानता की मूरत बनती
सृजन से तू ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
शक्तिमान को जन्म देकर
शक्तिहीन तू जीवन जीती
सृष्टि का वरदान तू है
नारी तू महान है नारी तू महान है
सृजन से तू ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ऋतु दुबे 07;03;2013
सृजन से तू रची बसी है
भर से तू दबी दबी है
पंखा लगे है तुझको
फिर भी उड़ने से तू डरी डरी है .....
सृजन से तू ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
धरा सी तू संसार का भर लिए
जन्म देती संतानों को
न तुझे मिले रोटी का टुकड़ा
फिर भी दुध बहता तेरी
तेरी छाती से संतानों के लिए
सृजन से तू ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बनता है पुरुष तुझे से महान
फिर भी तू है तुच्छ प्राणी सी
ज्ञान का भंडार होकर
अज्ञानता की मूरत बनती
सृजन से तू ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
शक्तिमान को जन्म देकर
शक्तिहीन तू जीवन जीती
सृष्टि का वरदान तू है
नारी तू महान है नारी तू महान है
सृजन से तू ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ऋतु दुबे 07;03;2013
मंगलवार, 5 मार्च 2013
विदा .........................................
विदा की इस बेला में
नैनों में नीर भरे
थम गयी कही रागिनी है
रूठ गया चपल नृत्य कही
तुम अब भी हो दूर खड़े
उखड़े उखड़े रूठे से
विदा की इस ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
नवजीवन तुम्हारा मंगलमय हो
प्रीत तुम्हारी आजीवन हो
भूल कर मेरे ह्रदय की कठनाईयो को
उन प्राणों में बस जावो तुम
नवजीवन ,नई डगर में
साथ हो हर पल जीत तुम्हारे
याद न आऊ में कभी
विदा की इस ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
दृग क्यू न हो सजल सजल
तेरे इन्द धनुष की आभा हो बिखरी बिखरी
दिल हो भले मेरा प्रपात में डूबता
नए सपनो नयी किरणों से सजे तेरा जीवन
मेरे सपने विराना पकडे खो जाये अंजन पथ पर
विदा की इस ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
रहे तू हर धडी मुखर मुखर
दिल में मेरे चल रख प्रलय हो
तू गोता लगाये रोशननाईयो में
में रजनी की आगोश में खो जाऊ
तू शंख भेरू बजा स्वागत कर नवजीवन का
में क्रंदन से बहलाती रहू दिल अपना
विदा की इस बेला मे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ऋतु 5मार्च
विदा की इस बेला में
नैनों में नीर भरे
थम गयी कही रागिनी है
रूठ गया चपल नृत्य कही
तुम अब भी हो दूर खड़े
उखड़े उखड़े रूठे से
विदा की इस ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
नवजीवन तुम्हारा मंगलमय हो
प्रीत तुम्हारी आजीवन हो
भूल कर मेरे ह्रदय की कठनाईयो को
उन प्राणों में बस जावो तुम
नवजीवन ,नई डगर में
साथ हो हर पल जीत तुम्हारे
याद न आऊ में कभी
विदा की इस ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
दृग क्यू न हो सजल सजल
तेरे इन्द धनुष की आभा हो बिखरी बिखरी
दिल हो भले मेरा प्रपात में डूबता
नए सपनो नयी किरणों से सजे तेरा जीवन
मेरे सपने विराना पकडे खो जाये अंजन पथ पर
विदा की इस ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
रहे तू हर धडी मुखर मुखर
दिल में मेरे चल रख प्रलय हो
तू गोता लगाये रोशननाईयो में
में रजनी की आगोश में खो जाऊ
तू शंख भेरू बजा स्वागत कर नवजीवन का
में क्रंदन से बहलाती रहू दिल अपना
विदा की इस बेला मे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ऋतु 5मार्च
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