तेरे लबो में मेरा नाम आते आते रुक ही जाता है
तू बचाना चाहता है मेरी निगाहो से हर पल
पर जाने क्यू तेरे कदम मेरे दहलीज में ठिठक ही जाते है
उठती है निगाहे कुछ खोजती हुयी न चाहते हुए भी तुझे से क़यामत हो ही जाती है। ऋतु दुबे (स्व रचित )
जाने क्या सोच के तेरे दीदार करने तेरी दहलीज पर आखे गड़ ही जाती
तू बेखबर पिछले दरवाजे से अपने सफ़र पर निकल जाते हो। ऋतु दुबे
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