सोमवार, 7 अप्रैल 2014

       तेरे  लबो में मेरा नाम आते आते रुक ही जाता है 
        तू बचाना चाहता है मेरी निगाहो से हर पल 
        पर जाने क्यू  तेरे कदम मेरे दहलीज में ठिठक ही जाते  है 
         उठती है निगाहे कुछ खोजती हुयी न चाहते हुए भी तुझे से क़यामत हो ही जाती है। ऋतु दुबे (स्व रचित )

      

     जाने क्या  सोच के तेरे दीदार करने  तेरी दहलीज पर आखे गड़ ही जाती
      तू  बेखबर पिछले  दरवाजे से अपने सफ़र पर निकल  जाते हो। ऋतु  दुबे

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