बुधवार, 8 मार्च 2017

""#नारी मन की मनुहार "

 कोई रोक लो न जाते हुए इस दिवस को,
 इस दिवस की साँझ हो न कभी ऐसा जादू कर दो न,
दिवस को मास,वर्ष, कई बरसो में परिवर्तित कर दो न,
मेरे सपनो के खाली केनवास में रंग भर दो न ,
आज दिया खुला मंच मुझे विचारो को रखने,
इस मंच को टूटने अब दो न मेरे विचारों को पंख दो न,
                             कोई रोक लो इस जाते----------
जो आज दिया अथाह सम्मान मुझे #नारी मान ,
ये सम्मान अपने दिलो दिमाग में मेरे लिए बसा लो न ,
जो आज दिया स्नेह अपार अपने ह्रदय की गहराइयों में बसा लो न
जो खड़े हुए मेरे सम्मान में आज तुम ,
मुझे अपनी बराबरी से खड़ा कर गर्वित हो न ,
खैरात नहीं मुझे अधिकार चाहिए जो छिना था मुझे से ,
                              कोई रोक लो इस जाते-----------
जो आज मेरी उत्कृष्टता ,सृजनता,की माला जपि ,
इस विचारो को , अपनी संकुचित सोच को वृहत कर ,
एक सृजनी का वो सम्मान मुझे दो न ,
में ही हु आह तेरी इस आह को वो आह दो न,
खीच कर एक लक्ष्मण रेखा हर जगह मेरे इर्दगिर्द ,
सुरक्षित भाव का वो अहसास में जीने का आत्मविश्वास दो न ,
                           कोई रोक लो इस जाते-------------
है मेरी जरुरत तुम को इस समाज को इस सत्य को स्वकीकर कर मुझे भी खुद सा वो सम्मान दो न
तेरे बिना में अधूरी मेरे बिना तू अधूरा इस तथ्य को मान लो न
मुझे खुली हवा में जीने की वो खुद सी आज़ादी दो न
नियति के इस खूबसूरत जीवन को मुझे भी खुल कर जीने दो न
                        कोई रोक लो इस जाते हुए-----------
**************#डॉ ऋतु दुबे *****************
***************8 /03/२०१७****************

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2015

कभी  जो  चेेहरे  अजनबी  हुआ  करते  थे  वो अब  अपने  से लगते है
जो अपने है खुदा  के  रिश्ते वो अजनबी  सा  मिज़ाज  रखते है ,
कौन अपना  खून है कौन अपना बेगाना मसाला  ये नहीं है मेरे यार
मसाला तो ये है अपने गैरो  सा और गैर अपनों सा प्यार  क्यू समेटे रहते है। ऋतु दुबे

शनिवार, 10 अक्टूबर 2015

                    
                 
                          यादे
              
        कुछ  शेष  है कुछ अवशेष  है  यादे  तेरी
        जहा  दफ़न  की थी  मोहब्बत  तेरी  मेरी
        वह  कुछ  पौधे  उग  आये  है  जख्मो  हरा  करने
        उन  में खिले पुष्प  बिखेर रहे  खुशबू
         मोहब्बत के  जो  एक  कहानी  सी है
         डालो  में  लगे  कांटे  अब भी  उन जख्म  को  कुदेर  रहे
         जिया   था  जिन लम्हों  को   वो  लम्हे  कटे  नहीं काट रहे
         काश  वो  नज़ारे  मिली  न होती 
         आज हम  भी  जिन्दा  होते  जिंदिगी  के साथ। ऋतु दुबे
        

बुधवार, 16 सितंबर 2015

अल्फाजो  को  यु  घुमा  फ़िरा   के न बोला करो
अगर  मोहब्बत  है  हम से  तो  दो शब्दों  में  बयां  करो
आती  शर्म  अगर  ज़माने  से तो सिर्फ  निगाहो  की  भाषा में
हम  से गुफ्फत  गु  किया  करो अल्फाज़ो  की   जरुरत  न होगी। ऋतु

रविवार, 6 सितंबर 2015

           



          यु  तुम मुझे  से छल न  किया  करो गिरधारी
          मैं   तुम्हारी  हर   अदा  पर  जाऊ  बलिहारी।
          यमुना तट  पर  राह  तकु  मै   नित नित  हरी।
            सखियो  के ताने   हर पल मुझे पर भरी 
         न भाये   मुझे हार  सिगार  न फूलो  की वेणी
         तेरे  नित   दर्शन  से  बंधी   जीवन  डोरे  मेरी
         न   मैं  राधा  न  मैं  रुक्मणी  बन पायी
         तेरी  मुरली  भी  कभी  मेरे  लिए सिर्फ  तन  न छेड़ पायी
         फिर भी एक आस  सी दिल  में  जगी रहती है
         मेरे  ह्रदय  आँगन में बसी तेरी  मूरत  है 
         उस पर ही   में  वारी हु   गिरधारी
        न  चाँहू  तीन भुवन  मै  न हीरो  से  भरी  थाली
         तेरी  भक्ति  के   दीप   जले  मेरे  मन  में गिरधारी
         दो इतना  आशीष  मुझे  तुम हो मुझे  में मैे  हो तुझ  में
         तेरी  प्रीत  में   रंगी में अपनी   छवि   में देखू छबि तुम्हरी।
                                  ................ यु  तुम  ,,,,,,,,,,,
                              ऋतु दुबे  ५/०९ २०१५ \\\\
        
       
        

















गुरुवार, 20 अगस्त 2015





       आ जरा  सुकून के पल गुजर ले मेरी जुल्फों के  छाओं   में 
      कुछ सुकून सा मिलेगा तुझे इस ज़माने  की उल्फतो  से। 
     महफ़िलो  में  भीड़  में भी   हाला के  साथ  तू वो  कोना  ही तलाशेगा 
   जहा  तू  जाम  में मेरी  तस्वीर से चंद  मोहब्बत  की बाते कर सके.।                                                महफ़िल भी होगी  कहकहे  भी होगे , साकी    हाथो में झलकते  जाम भी  होगा
   न होगे तो हम उस  महफ़िल  में  पर तेरी  हर  सांसो  में  हम  होगे। 
   न   उम्मीद है मुझे   जहा में तेरा मेरा  न होने का   और  न गम है  तेरा  किसी  और के होने पर 
      बस  रहम आता  है मुझे तुझ  पर  न तू इधर  का  रहा न उधर का। ऋतु दुबे  २०/०८/१५

बुधवार, 19 अगस्त 2015

तुम अपनी रंजिशे  को  हम दोनों  के दरमियाँ  से हटा के तो देखो 
तुम्हारा  सोचने  का नजरिया  ही बदल  जायेगा जिंदगी को लेकर।
थोड़ा  कदम  बढ़ा  के तो देखो  बाकि   दूरियाँ   हम तय कर  लेगे
तुम केवल  हाथो  को बढ़ा  के तो देखो गले हम लग जायेगे तुम्हारी कसम।
चन्द  लम्हों की जिंदगी  है मेरी तेरे लिए तो मैंने खुद  से दुआ  कर ली है 
 तेरे  चेहरे  पर एक  तब्बसुम  जो आ जाये मेरे लिए  या खुदा
  एक पूरी जिंदिगी इस लम्हे में जी  लेगे   हम" ऋतु "