गुलमोहर
आदित्य की आग में तप कर
मैं ही मुस्कुरा हूँ
उसकी लाली अंगारे सी लगती है ,
मेरी लाली इस प्रंचड तपिस में ,
शीतलता की अनुभूति देती है
वो लाल आँखों से क्रोधित हो मुझे
मुझे निहार रहा है .
में लाली लिए मुस्कुरा रहा हूँ ,
औरो को भी मुस्कान बाँट रहा हूँ .
गर्मियों में गुल खिला गुलमोहर कहला रहा हूँ .
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