रविवार, 14 अप्रैल 2013

 कुछ  शेर  अर्ज  किया है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,



मेरी आह से निकली अधिया मेरा ही आशिया उजड़ने में अमदा है
एक एक तिनका जोड़ा था हर तिनका उड़ने में आमदा है .ऋतु




 तुम ने जो जख्म दिया था वो अब नासूर बन गए है
रिसता है अब भी उस से तेरी प्यार की मीठी टीस .ऋतु




 उठे सब के कदम मंजिल के तरफ ,मंजिल हर एक को नहीं मिलती
चाँद चमकता है असमान में ,रोशनी हर एक को नहीं मिलाती .ऋतु


काँटों पर चलते चलते अब फूलो की कोमलता भूल गए
अपनों से जखम खाते -खाते उस का दर्द भी भूल गए .ऋतु 




 जमाना बीत गया उन को इस गली से गुजरे हुए
अब भी फिजा में गूंज रही उन की पायल की खनक .ऋतु



 हम गैरों से नहीं अपनों से सताये हुए है
जख्म फूलो से पाए हुए है
काँटों ने सहला कर छोड़ दिया हमे
कहा मुस्कुराके तेरे अपने ही पराये हुए है .ऋतु 03/04/13








10 टिप्‍पणियां:

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

वाह! बेहतरीन रचना | आभार

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

शकुन्‍तला शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्‍दर रचना.

Shikha Kaushik ने कहा…

सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

BHARTIY NARI
PLEASE VISIT .

IRA Pandey Dubey ने कहा…

तुषार जी आप का बहुत आहूत शुक्रिया आप ने मेरे ब्लॉग के लिए समय दिया .

IRA Pandey Dubey ने कहा…

dhanywad shakuntala ji ,aap ka dil se abhar

IRA Pandey Dubey ने कहा…

thax shikha ji aap ka bhi dil se

Jyoti khare ने कहा…

काँटों पर चलते चलते अब फूलो की कोमलता भूल गए
अपनों से जखम खाते -खाते उस का दर्द भी भूल गए .ऋतु-----
जीवन की संवेदनाओं को व्यक्त करती गहन अनुभूति
सुंदर रचना बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

Unknown ने कहा…

wah! shandaar baat......thanks

संजय भास्‍कर ने कहा…

तभी तो मन कहता है ...."कुछ बात तो है" रचना में .....

"नेह्दूत" ने कहा…

माशाल्लाह ........
अंदाज -ए- बयाँ आपका :::